प्रियतमा तेरे कदम, मेरे पदचिह्न नहीं।
किनारे एक नहीं तो क्या, कश्तियाँ अभिन्न सही।
वाक्यांश एक न सही, वर्णमाला एक है वही।
प्रवाह एक नहीं तो क्या, प्रावहिनी एक ही बही।
प्रियतमा तेरे कदम, मेरे पदचिह्न नहीं।
किसी जुग की दूँगा न मैं दुहाई।
सदा सीता, सैरिन्ध्री की कीर्ति की चिता सजाई।
सभी ने तेरे गौरव की यही कहानियाँ कही।
प्रियतमा तेरे कदम मेरे पदचिह्न नहीं।
नपुंसकों के बीच, मुशायरों में है अनारकली।
घूँघट बिन जब सावित्री, हो जाए वह मली।
ऐसे बालम की कामिनी मुझको ना चही।
प्रियतमा तेरे कदम, मेरे पदचिह्न नहीं।
जनतंत्र में हमारा स्वराज, क्यों मेरा राज।
इंदिरा, पाटिल सदा रहेंगी सिहांसनों पर विराज।
विजयी भवः, तू किसी के आधीन नहीं।
प्रियतमा तेरे कदम, मेरे पदचिह्न नहीं।
समाज करे उन्नति भी, वृद्धि भी श्री में।
पर अज्ञानता मिटा देती है देवी स्त्री में।
हमारी गल्ले में, तेरे भी समान खाते-बहि।
प्रियतमा तेरे कदम, मेरे पदचिह्न नहीं।
गौरी बिन शिव भी शव है।
तेरे संग निर्माण सभी नव हैं।
आदिकाल का है पलड़ा, है झुकाव वही।
अष्टभुजा की प्रतिबिंब, तू नारी वीर चिह्न वही।
प्रियतमा तेरे कदम, मेरे पदचिह्न नहीं।।
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